माँ नर्मदा जयंती 2025: इतिहास, पूजा विधि और महत्व

माँ नर्मदा जयंती 2025: भारत में नदियों को केवल जलधारा नहीं, बल्कि देवी का स्वरूप माना जाता है। गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, कृष्णा की तरह नर्मदा नदी भी भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखती है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को माँ नर्मदा जयंती मनाई जाती है। इस दिन भक्त नर्मदा नदी के तटों पर विशेष पूजा-अर्चना और स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं।माँ नर्मदा को मोक्षदायिनी कहा जाता है, और मान्यता है कि इस पवित्र नदी के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के समस्त पापों का नाश हो जाता है। इस लेख में हम नर्मदा जयंती का इतिहास, पूजा विधि और इसका धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व विस्तार से जानेंगे।

माँ नर्मदा का इतिहास और पौराणिक कथा

माँ नर्मदा को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र नदियों में से एक माना जाता है। यह नदी मध्य प्रदेश और गुजरात में बहती है और अरब सागर में मिलती है। नर्मदा नदी का उल्लेख अनेक पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। नर्मदा को “रेवा” के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत की प्राचीनतम नदियों में से एक है। नर्मदा का उद्गम स्थल मध्य प्रदेश के अमरकंटक में स्थित है, जो एक प्रमुख तीर्थ स्थान है। मान्यता है कि नर्मदा जी भगवान शिव के आशीर्वाद से उत्पन्न हुई थीं और यह नदी स्वयं शिव स्वरूपा मानी जाती है।

पौराणिक मान्यता

माँ नर्मदा को भारतीय संस्कृति में अत्यंत पवित्र और मोक्षदायिनी नदी माना जाता है। हिंदू धर्म में नर्मदा को देवी का स्वरूप मानकर पूजा की जाती है। इसके उद्गम स्थल अमरकंटक (मध्य प्रदेश) को भी धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माँ नर्मदा का जन्म भगवान शिव के तप से हुआ था। कहा जाता है कि जब शिवजी गहन ध्यान में लीन थे, तब उनके शरीर से निकली पसीने की बूंदों से नर्मदा का प्राकट्य हुआ। इसलिए इसे शिव की मानस पुत्री भी कहा जाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार, नर्मदा को पहले एक सुंदर कन्या के रूप में उत्पन्न किया गया था, लेकिन उन्होंने विवाह के स्थान पर संसार की सेवा करने का संकल्प लिया और नदी के रूप में प्रवाहित हो गईं।

स्कंद पुराण में वर्णन है कि गंगा में स्नान करने से पुण्य मिलता है, लेकिन नर्मदा के दर्शन मात्र से ही पापों का नाश हो जाता है। इसलिए इसे “दर्शन स्पर्शा विहीना” नदी भी कहा जाता है। नर्मदा परिक्रमा को अत्यंत पुण्यदायी माना गया है, जिसे करने से जन्मों के पाप कट जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

माँ नर्मदा जयंती की पूजा विधि

नर्मदा जयंती के दिन श्रद्धालु माँ नर्मदा की विशेष पूजा करते हैं। यह दिन आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

पूजा की विधि:

  1. स्नान एवं संकल्प – इस दिन नर्मदा नदी में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यदि संभव न हो, तो घर पर ही गंगाजल या नर्मदा जल मिलाकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
  2. माँ नर्मदा का अभिषेक – नर्मदा माँ की प्रतिमा या चित्र को जल, दूध, दही, घी, शहद और पंचामृत से स्नान कराएँ।
  3. व्रत और उपवास – कई भक्त इस दिन उपवास रखते हैं और माँ नर्मदा की आराधना करते हैं।
  4. मंत्र जाप – “ॐ नर्मदायै नमः” मंत्र का जाप करना अत्यंत पुण्यदायक होता है।
  5. दीपदान और हवन – नर्मदा तट पर दीपदान करने और हवन कराने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
  6. कथा वाचन और आरती – माँ नर्मदा की कथा का पाठ करें और शाम को आरती करें।

इस दिन भक्त विशेष रूप से नर्मदा अष्टक और नर्मदा स्तुति का पाठ करते हैं।

माँ नर्मदा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

माँ नर्मदा को हिंदू धर्म में मोक्षदायिनी और पुण्य प्रदायिनी नदी के रूप में पूजा जाता है। भारत की अन्य पवित्र नदियों में जहाँ स्नान करने से पापों का नाश होता है, वहीं नर्मदा के सिर्फ दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के पापों का नाश हो जाता है। इस कारण इसे विशेष रूप से पवित्र और दैवीय नदी माना गया है।

धार्मिक महत्व

  1. शिव की मानस पुत्री – पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माँ नर्मदा भगवान शिव के ध्यान से उत्पन्न हुईं, इसलिए इन्हें शिव की मानस पुत्री कहा जाता है।
  2. मोक्ष प्रदान करने वाली नदी – स्कंद पुराण में उल्लेख है कि नर्मदा के दर्शन मात्र से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए इस नदी के किनारे कई मंदिर और तीर्थस्थल स्थित हैं।
  3. नर्मदा परिक्रमा का महत्व – हिंदू धर्म में नर्मदा परिक्रमा अत्यंत पुण्यदायी मानी जाती है। भक्तजन करीब 3,500 किमी लंबी यात्रा कर नर्मदा नदी की परिक्रमा करते हैं, जिससे उन्हें आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  4. पिंडदान और तर्पण का महत्व – नर्मदा नदी के किनारे किए गए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। खासकर ओंकारेश्वर, महेश्वर और अमरकंटक में यह अनुष्ठान विशेष रूप से किए जाते हैं।
  5. बाणलिंग की महिमा – नर्मदा के तट पर मिलने वाले शिवलिंग को “बाणलिंग” कहा जाता है, जिन्हें स्वयंभू शिवलिंग माना जाता है। शिव भक्त इनका पूजन कर आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करते हैं।

आध्यात्मिक महत्व

  1. तपस्वियों की भूमि – नर्मदा के किनारे अनेक ऋषि-मुनियों ने तपस्या की, जिनमें अगस्त्य, मांडव्य और मार्कंडेय ऋषि प्रमुख हैं।
  2. शुद्धता और सकारात्मक ऊर्जा – कहा जाता है कि नर्मदा के जल में विशेष शुद्धता और आध्यात्मिक ऊर्जा होती है। वैज्ञानिक रूप से भी यह सिद्ध हुआ है कि नर्मदा का जल लंबे समय तक खराब नहीं होता।
  3. योग और ध्यान का केंद्र – नर्मदा तट पर कई साधु-संत आज भी ध्यान और साधना करते हैं, जिससे यह स्थान आध्यात्मिक उन्नति के लिए उपयुक्त माना जाता है।
माँ नर्मदा जयंती से जुड़े सांस्कृतिक और सामाजिक पहलू

नर्मदा जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। यह पर्व माघ मास की शुक्ल पक्ष सप्तमी को मनाया जाता है, खासकर मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में माँ नर्मदा के भक्त इसे बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं।

सांस्कृतिक पहलू

  1. भव्य उत्सव और मेले – नर्मदा जयंती के अवसर पर अमरकंटक, होशंगाबाद, ओंकारेश्वर और जबलपुर जैसे तीर्थस्थलों पर भव्य मेले और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं।
  2. भजन और कीर्तन – इस दिन नर्मदा तटों पर भजन-कीर्तन, कथा-वाचन, और जागरण का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
  3. दीपदान और गंगा आरती जैसी भव्य पूजा – नर्मदा तटों पर शाम को दीपदान किया जाता है, जिससे पूरा क्षेत्र दिव्य प्रकाश से जगमगा उठता है।

सामाजिक पहलू

  1. पर्यावरण संरक्षण – नर्मदा जयंती के अवसर पर नदी की सफाई अभियान और वृक्षारोपण जैसे सामाजिक कार्य किए जाते हैं।
  2. सामुदायिक समरसता – यह पर्व समाज में एकता, प्रेम और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देता है, जहां सभी जाति और वर्ग के लोग एक साथ माँ नर्मदा की आराधना करते हैं।
  3. गरीबों को भोजन वितरण – इस दिन कई धार्मिक संगठनों द्वारा भंडारे और अन्नदान का आयोजन किया जाता है।

माँ नर्मदा जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह हमें प्रकृति के महत्व और जल संरक्षण का संदेश भी देती है। नर्मदा केवल एक नदी नहीं, बल्कि हमारे जीवन, संस्कृति और अध्यात्म की धरोहर है। इस दिन माँ नर्मदा की पूजा करके हम न केवल आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि अपने जीवन को सुख-समृद्धि से भी भर सकते हैं।

“हर-हर नर्मदे! जय माँ नर्मदा!” 🚩🙏