राजस्थान में खनन से उत्पन्न मलबे के निर्माण से हुए पहाड़ों की संख्या 1000 से ज्यादा हो चुकी है। ये पहाड़ 4 जिलों में फैले हुए हैं जिससे भूगर्भीय खतरा बढ़ता जा रहा है।
भूगर्भ में छुपे खनिज के खजाने को हथियाने की होड़ में भविष्य में भूगर्भीय घटनाओं का खतरा बढ़ सकता है। सरकारें मात्र अपने फायदे को ही देख रही हैं, जबकि बजरी और स्टोन क्षेत्रों में खनन कचरे से एक हजार से अधिक मानव निर्मित पहाड़ बन चुके हैं, जिनमें से कुछ की ऊंचाई 500 फीट से भी ज्यादा है। इन पहाड़ों के नीचे खुदाई से बनी गहरी खानों में बारिश का पानी भरने से कृत्रिम झीलें बन रही हैं, जो प्रदेश के पारिस्थितिकी तंत्र को बिगाड़ रही हैं। इस अनदेखी का खामियाजा भविष्य में भूगर्भीय घटनाओं के रूप में भुगतना पड़ सकता है।
बीकानेर क्षेत्र में 20 से 100 फीट गहराई में बजरी और व्हाइट क्ले जैसे खनिज मौजूद हैं, जहां कई खानों में पिछले 30-40 साल से खनन जारी है। बीकानेर-जैसलमेर मार्ग पर कोलायत क्षेत्र, जो पहले एक समतल बंजर भूमि थी, अब खनन कचरे के पहाड़ों के रूप में नजर आती है। बीकानेर-जोधपुर हाईवे से लगते बरसिंहसर और पलाना के कोयला खनन क्षेत्रों में काले मलबे के पहाड़ बन चुके हैं। प्रदेश के अन्य खनन क्षेत्रों पर नजर डालें, तो वहां भी भूतल की स्थिति तेजी से बदल रही है।
राजस्थान में खनन एक्सपर्ट व्यू
राजकीय डूंगर कॉलेज, बीकानेर के व्याख्याता विपिन सैनी का कहना है कि खनन से होने वाली गहरी खदानों और मलबे के ढेरों से डेजर्ट इको सिस्टम में बदलाव आ सकता है। वर्तमान में प्रदेश का अधिकांश क्षेत्र सिटी लो डेसिटी भू-कंपन वाला है। खनन से भूमि पर किसी स्थान पर दबाव बढ़ रहा है तो किसी स्थान पर गहरी खदान बनने से वहां खाली जगह हो रही है, जिससे यह लो डेसिटी से हाई डेसिटी में बदल सकता है।
भीलवाड़ा… जहाजपुर-हमीरगढ़ क्षेत्र में खनन से लगभग 20 मलबे के पहाड़ बन गए हैं, जिनका असर जल संसाधनों पर पड़ रहा है। वर्षा के समय खदानों में पानी भरता है जिसे पंप से बाहर निकाला जाता है।
उदयपुर… उदयपुर में केसरियाजी, ओड्यास, मटारमा, दरोली और राजसमंद के भाषा पसंद, मोखमपुरा, करजय घाटी क्षेत्र में माइनिंग वेस्ट की डम्पिंग होती है। यहां के पुराने मलबे के ढेर हैं। उदयपुर से 15 किमी दूर अहमदाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग के पास बलीचा स्थित लाई गांव के पहाड़ों के बीच पानी भरने से कृत्रिम झील बन गई है।
कोटा… कोटा स्टोन की खानों के मलबे से पहाड़ बन गए हैं। रामगंजमंडी, पेट मोडक, साखेड़ी आदि में कोटा स्टोन के मलबे के पहाड़ दिखाई देते हैं। इस मलबे का उपयोग दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे के निर्माण में किया गया है। खनन से जमीन बंजर हो गई है और बंद खानों में पानी भरा रहता है।
Source — राजस्थान पत्रिका